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Brij Raj Swami Mandir

 

                     श्री बृज राज स्वामी मन्दिर
हिमाचल प्रदेश का मुख्य द्वार पहाडियों के मनमोहक दृष्य ,स्वस्थ जलवायु से युक्त व समूद्रतल से 2125 फुट की ऊॅंचाई पर बसा यह नूरपुर शहर , पठानकोट-मण्डी मार्ग पर स्थित आज भी ऐतिहासिक पृष्ठों से जुडा है। इस नगर का पुराना नाम धमेडी था । नूरजहाँ के आगमन पर इस मनमोहक क्षेत्र का नाम नूरपुर पडा। श्री बृज राज स्वामी मन्दिर पुराना दरवार-ऐ-खास था । राजा जगत सिह ने इस दरवार-ऐ-खास को मन्दिर का रुप दिया तथा भितिकाओं पर कृष्ण लीलाओं का चित्र-चित्रण करवाया था। एक किवदन्ती के अनुसार सन् 1619 से 1623 के मध्य एक बार राजा जगत सिंह अपने पुरोहित के साथ चितोडगढ राजस्थान के राजा के आमन्त्रण पर गये । राजा तथा पुरोहित को जो कमरा रहने के लिए दिया था उस कमरे के साथ एक मन्दिर था । आधी रात के समय मन्दिर में घंुघरुओं की आवाजें तथा संगीत की धुनें राजा जी के कानो में पडी । उस आवाज ने दोनों को मन्त्रमुग्ध कर दिया। दोनांे ने दरवाजा खोल कर देखा कि एक औरत उस कमरे में भगवान श्री कृष्ण जी की मूर्ति के सामने उन्ही के भजन में मग्न होकर नाच रही थी। सुबह पूछने पर पता चला कि यह औरत कोई और नहीं गिरधर गोपाल की परमभक्त मीरा बाई थी। पुरोहित के मन में एक विचार आया तथा उन्होने राजा से कहा, कि राजन जब हम यहाॅं से जाएँँगे तब राजा से उपहार स्वरुप भगवान श्री कृष्ण जी की यह मूर्ति ही मांगना तथा साथ में एक मूर्ती उन की परम भक्त मीरा जी की। राजा जगत सिह ने ऐसा ही किया । विदाई के समय उपहार में यही मूर्तियाॅ माँगीं । चितोडगढ के राजा ने यह मूर्तियाॅ तथा साथ में मौलसरी का पेड उपहार के रुप में दिए । राजा जी ने सम्मान सहित भगवान श्री कृष्ण जी की मूर्ति तथा मीरा जी की मूर्ति को श्री बृज राज मन्दिर में व मौलसरी का पेड प्रांगण में स्थापित करवाया। श्री कृष्ण जी की राजस्थानी शैली की काले संगमरमर की मूर्ति आज भी इस बात की जीती जागती मिसाल है। । यह मन्दिर चारो ओर से पुराने किलों से घिरा हैं जिनका जिर्नोद्धार पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है । इसी मन्दिर के पास काली माता जी का भव्य मन्दिर है जिस में भी श्रद्धालुओं की भरमार रहती है। हर साल श्री बृज राज स्वामी मन्दिर में जन्माष्टमी के अवसर पर तीन दिवसीय मेला लगता है जिसमें भगवान श्री कृष्ण जी के परम भक्त , इस मन्दिर में आए श्रदालुओं के लिए फलाहार व अन्य खादय सामग्री का उचित प्रबन्ध करवाते है। बच्चों के लिए झूले व अन्य सामान की दुकाने भी इस मेले की शोभा बढाते है। दूर-दूर से भक्त इस मन्दिर में माथा टेकने आते हैं। मान्यताओं के अनुसार आज भी इस मन्दिर से घुंघरुओं की आवाज सुनाई देती है।