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Shiv Mandir Matholi

शिव मन्दिर मठोली

किवदंति अनुसार सत्युग में यहॅा पर कोटा शहर होता था जो राजा जय चन्द के राजवाडे में आता था। जिस की हद हरनोटा  ,ज्वाली , तलवाडा ,भडवार तथा कण्डवाल तक फैली हुई थी। इसी कोटा शहर में महात्मा निरमाण जी रहते थे। जो बहुत ही ज्ञानी व सदाचारी थे। इसी कोटा शहर में बसोली के एक लडके की शादी हुई । वह लडका जब भी अपने ससुराल आता महात्मा निरमाण नाथ जी के पास सुवचन व ज्ञान लेने के लिए जरुर आता।जो कि मठोली के शिव मन्दिर में भक्ति करते थे। राजा जय चन्द के यहाॅ कोई भी संतान नही थी ।विवाह के बहुत समय के बाद उसके यहाॅ एक कन्या ने जन्म लिया। राजपुरोहित को जब उस के नामकरण की रस्म अदा करने के लिए कहा तो राजपुरोहित ने घवराकर राजा से बोला कि महाराज यह लडकी आप कि लिए अशुभ है। इस को गरेल गंगा में बहा दो । ऐसा सुनकर राजा ने उस को एक संदूक में डालकर गरेल गंगा में बहा दिया। बहते हुए यह संदूक गरेल गंगा में कपउे धो रहे एक धोबी के पास पहुॅचा। उसने उस संदूक को पकडकर जैसे ही खोला तो उस ने देखा कि उसमें एक सुन्दर बच्ची अंगुठा चूस रही थी। धोवी को संदूक में रखे आभूषणों से पता चल गया कि यह लडकी शाही खानदान की है। धोवी के चार पहले से ही पाॅच बच्चे थे फिर उसने सोचा कि उस का एक मित्र जो कि कुम्हार था और मिट्टी के बर्तनो का काम करता था उसकी कोई संतान नही थी । क्यों न यह बच्ची उस कुम्हार को दे दी जाए और आखिर में  उस ने वो लडकी उस कुम्हार को दे दी । कुम्हार ने उस लडकी का नाम सौरठ (फैकीे हुई) रख दिया । कई वर्ष उपरान्त एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए वन में गया । उस समय वह कन्या (सौरठ) बर्तन बनाने के लिए मिट्टी लेने वन में आई हुई थी । राजा ने जैसे ही उस लडकी को देखा राजा उस पर मोहित हो गया और शादी का बिचार उस के मन में पनपने लगा । इस दौरान सौरठ ने मिट्टी की टोकरी भर ली थी। उस ने राजा कि तरफ देखते हुए मन में विचार किया कि राजा तो राजा है वो टोकरी को उठाने के लिए राजा को कैसे कहे, कहते हैं कि सतयुग में हर अजीवित बस्तु बात करती थी,सौरठ को परेशान देखकर टोकरी बोली “हाथ लगा में खुद फुलों की तरह तेरे सर पर आ जाऊॅगी“। कन्या सौरठ ने हाथ लगाया और टोकरी सच में ही फूलों से भी हल्की हो गई और उस कन्या ने आसानी से टोकरी को अपने सिर पर रख लिया । कन्या की ताकत देखकर राजा हैरान हो गया। राजा कन्या के घर का पता लगाकर अपने महल में बापिस आ गया । राजा ने अपने बजीर को उस के घर भेजा और कहा कि उनको किसी भी प्रकार का लालच देकर कहो कि राजा को आप की लडकी पसन्द आ गई है और वो उस से शादी करना चाहता हैं। बजीर सैनिक सहित कुम्हार के घर गया और कुम्हार से सारी बात कही, जबाव में कुम्हार ने बजीर को बताया कि यह कन्या तो राजा की ही बेटी है और हमें गुरेल गंगा में 17-18 वर्ष पहले मिली थी । राजा को विना बताए हमने बहुत छुप छुप कर इस का लालन-पालन किया है। अतः यह कैसे सम्भव हो सकता है कि एक पिता अपनी पुत्री से विवाह रचाए । बजीर सैनिको सहित राजा के महल में पहुंच गया और राज को सारी बात बताई । लेकिन राजा ने किसी ओर रियासत के महान पण्डित को बुलाया और उसने घुमा फिरा कर प्रश्न पूछा कि पण्डित जी अगर अपने घर की घोडी ही उस के आगे बच्छेरी हो तो क्या राजा उस पर सवारी कर सकता है पण्डित जी बोले उस पर किसी को क्या एतराज हो सकता है ऐसा तो होता ही है कि बैल का बछडा बडा होकर बैल बनता है । राज ने असली बात को न समझते हुए अपने समस्त सैनिको ,मन्त्रियों व प्रजा को शादी के लिए निमंत्रण देने व तैयारी करने के लिए कह दिया । शादी बाले दिन वही वसोली  वाला लडका आपनी पत्नी व बच्चों के साथ अपने ससुराल कोटा मठोली में आया हुआ था तथा निरवाण नाथ महात्मा के पास ज्ञान की बात सुनने के लिए गया । उसने देखा कि महात्मा जी बहुत ही व्याकुल थे ओर जैसे ही महात्मा जी ने उस लडके को देखा तो वह अपनी व्याकुलता छुपाने लगे जिस पर लडके ने महात्मा जी से पूछा कि “महात्मा जी क्या बात है आज आप बहुत ही व्याकुल दिखाई दे रहे हो“ इस पर महात्मा निरमाण जी बोले कि आज कोटा शहर गर्क हो जाएगा । समस्त शहर काल के ग्रास में समा जाएगा तू ऐसा कर अपना परिवार, यहाॅ से लेकर वापिस अपने गाॅव चला जा और यह सारी बात किसी को भी मत बताना। वो जल्दी जल्दी ससुराल के घर गया और अपनी पत्नी को अपने घर वसोली चलने के लिए कहा । रास्तें में वो जब गरेल गंगा को पार कर रहे थे तो पत्नी ने अपने पति से पूछा कि इतनी शीघ्रतापूर्वक यहाॅ से जाने का क्या कारण है लेकिन महात्मा के मना करने पर भी उस ने सारी बात अपनी पत्नी को बता दी। यह सब सुनकर वह अपने पति से बोली कि क्या आप यहाॅ थोडी देर यहाॅ रुक सकते हो क्योक् मैं घर पर कुछ भूल आई हूॅ। उसको लेकर थोडी देर में वापिस आती हूॅ ऐसा कह कर वह अपने बच्चों के साथ वापिस मायके  चली गई ओर वापसी में अपना बच्चा अपनी माॅ के साथ सुलाकर अपने छोटे भाई को लेकर चुपके से आ गई। ताकि उसके मायके का कुल खत्म न हो जाए । उधर राजा जय चन्द की बारात आई और शगुन की तैयारी होने लगी , पण्डित विवाह पढने लगा, कन्या सौरठ बीच में ही वोल पडी

                                                  “व्याह पढी ले पणता ,

                                                                              तेनू डस ले काला नाग,,

                                                 राजा जयचन्द दी मैं बेटठी,

                                                                                   तो सौरठ मेरा नाम।

आधा लगन होने पर पण्डित ने राजा को बताया कि यह वही कन्या है जो बहुत वर्ष पहले आप ने एक सदूंक में डाल कर गरेल गंगा में बहाया था अब तो सारा कुछ गर्क हो जाएग, प्रलय आ जाएगी । राजा को अपनी भूल का पता लग चुका था। राजा दौडे -दौडे नंगे पाॅव महात्मा के पास पहुॅचा । राजा महात्मा निरमाण नाथ के पैरों में गिरकर बोला “मुझे बचा लो बाबा“ । महात्मा ने राजा जयचन्द को सारी बात दुवारा बताई कि क्या कोई बाप अपनी बेटी से विवाह कर सकता है। राजन आपने यह क्या अनर्थ कर दिया परन्तु उस के बावजूद महात्मा ने राजा को मक्खी बनाकर अपने पास रखे हुए डंडे के ऊपर चिपका लिया उसी समय कन्या सौरठ भी वहाॅ पहुॅच गई और महात्मा से कहने लगी “मेरे निरलज वाप को मुझे वापिस करो, नही तो मैं आप को श्राप दे दूंगी“। कहते है कि उस युग में नारी श्राप बहुत ही सत्य माना जाता था। श्राप से डरकर महात्मा ने डंडा बाहर फैक दिया। सारी बारात हरनोटा कुवाल में सियाल पत्थर हो गई।जो आज भी हरनोटा कुवाल में साक्षात विदयमान है। महात्मा ने भी गर्क होने से पहले समाधि ले ली। राजा का कोटा शहर गर्क हो गया कन्या सोरठ कोटे बाली माता के जंगलो में सती हो गई । उस वसोली बाली लडकी जिसके कोटे शहर में मायके थे के आगे कोई भी औलाद नहीं हुई । परन्तु उसके भाई के आगे चार पुत्र हुए व उसका वंश आज भी उस लडकी को अपनी कुल देवी मान रहे है और उस का वंश आज भी जम्मू-कश्मीर के विभिन्न प्रांतो में कुच्छडयत्री जात से प्रसिद्ध है। महात्मा की समाधि के बाद यह मन्दिर भी गर्क हो गया। तथा शिवलिंग भी कहीं जमीन में धंस गया फिर कई वर्ष उपरांत बजीर राम सिंह के पूर्वजों को सपने में शिवलिंग के दर्शन होने लगे। उस समय के राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने सैनिको को शिवलिंग को बाहर निकालने के लिए कहा । लेकिन सैनिक जितना शिवलिंग बाहर निकालते उतना शिवलिंग वापिस धरती में समा जाता जब राजा को इस की जानकरी मिली तो उस ने स्वय वहाॅ जाकर गुस्से में लोहे की छड से शिवलिंग पर प्रहार कर दिया जिससे उस शिवलिंग में से रक्त कि धारा बहने लगी। इसके उपरान्त राजा ने शिवलिंग को कस के पकड लिया जिस से कि रक्त कि धारा बंद हो जाए तथा साथ ही अपने इस कृत्य के लिए भगवान से माफी मांगी मांगी तथा उसी स्थान पर एक भव्य मन्दिर का मठोली में निर्माण करवाया

लेकिन 1905 में आए भुकंप ने कोटा मठोली शहर को क्षतिग्रस्त कर दिया यहाॅ तक की गरेली खड की दिशा ही बदल दी लेकिन उस समय यह मन्दिर बच गया । मन्दिर पुजारी के अनुसार इस मन्दिर के आस-पास के इलाके में राजा जयचन्द की कचहरी लगती थी और ठाणा नामक गाॅव में उस समय कैदियों को रखा जाता था । आज भी मन्दिर के आस पास निर्माण कार्य करने के दौरान जमीन से निकलने वाले पुराने अवशेष इस एतिहासिक कथा को प्रमाणित करते है शिवरात्री बाले दिन दूर-दूर से लोग सुबह चार पाॅच बजे से ही शिवलिंग पर जल डालने व पूजा अर्चना के लिए पहुच जाते है।