Kunjar Mahadev
कुंजर महादेव
हिमाचल प्रदेश को ज्यूँ ही देवभूमि नही कहा जाता , यहां घर – घर में देवालय है । यहां के हर शहर या हर गांव में कोई न कोई मंदिर है । ऐसा ही एक स्थान है कुंजर महादेव जो भगवान शिव की तपोभूमि के बाबजूद भी वह मुकाम हासिल नही कर पाया जो मुकाम मणिमहेश , बैजनाथ या काठगढ़ आदि को हासिल हुआ है ।
कहते हैं मणिमहेश की यात्रा तब तक सफल नही होती जब तक श्रदालु कुंजर महादेव में शीश नही नवाते । एक दन्तकथा के अनुसार भगवान शिव ने कैलाश जाते समय कुछ समय के लिए यहां रुककर तपस्या की थी । कहते हैं भगवान शिव ने एक शिला का रूप धारण किया और साधना में लीन हो गए । एक गड़रिया वहां पर भेड़ो को चराने के लिए आया और उस शिला पर बैठकर दराती को धार लगाने लगा ।
जब वह वहां से उठा और दराती के निरीक्षण के लिए एक पेड़ को काटना चाहा तो एक ही वार से मोटा पेड़ काट दिया । गड़रिया अचंभित था । उसने निश्चय किया कि वह शाम को घर वापिसी पर इस पत्थर को उठाकर ले जायेगा । दिनभर भेड़ें चराने के बाद शाम को जब वह पत्थर को उठाकर ले जाने की कोशिश की तो वह उस पत्थर को हिला तक न सका । तब उसने निश्चय किया कि वह पत्थर का एक हिस्सा ही सही तोड़कर ले जायेगा । उसने पूरी ताकत से उस पत्थर पर प्रहार करना शुरू कर दिया और पत्थर को एक दरार सी आ गई । उसी क्षण भगवान शिव प्रकट हुए और नाराजगी प्रकट की और कहा कि आपने मेरी तपस्या में खलल डाला है । गड़रिया भगवान शिव के चरणों में गिर पड़ा और गिड़गिड़ाया कि उसने जो भी किया अज्ञानतावश किया अतः उसे क्षमा कर दिया जाये । प्रभु खुश हो गए और उसे माफ़ कर दिया लेकिन साथ ही साथ यह भी कहा कि वह इस एकांत स्थान में तपस्या कर रहा है अतः आप किसी भी व्यक्ति को बताना मत कि मैं यहां तपस्या कर रहा हूँ । गड़रिया चला गया लेकिन उसने अन्य गड़रियों को अपनी आपबीती सुना डाली । बस फिर क्या था वह गड़रिया एक चट्टान का रूप धारण कर गया ।
भगवान शिव भी वहां से कैलाश के लिए प्रस्थान कर गए और उस स्थान पर वह खंडित शिला व भगवान शिव के पदचिन्हों के निशान रह गए । उन पदचिन्हों के स्थान पर पानी एकत्रित हो गया जो आज भी ” कुंजर ” पर्वतखण्ड पर एक कुँए के रूप उपस्थित है । यह एक साक्षात चमत्कार है कि इतनी ऊंचाई एक टीले पर कैसे एक कुआं हो सकता है । सावन या भादों महीने में राधा अष्टमी के दिन यहाँ एक पवित्र स्नान होता है और हजारों श्रदालु यहां पर पवित्र स्नान करते हैं । किवदंती है कि उस दिन कुएं का पानी अचानक छलक आता है और लोग स्नान करके अपने सारे पापों को धो डालते हैं ।भगवान शिव के पदचिन्हों के कारण इस जगह का नाम ” पातका ” पड़ गया ।
कैसे पहुंचे कुंजर महादेव –
कुंजर महादेव के दर्शन करना वहुत ही आसान है । पठानकोट तक रेल या हवाई मार्ग से पहुंचा जा सकता है । पठानकोट से 24 किलोमीटर दूर हिमाचल का नूर नूरपुर तक वस द्वारा पहुंचा जा सकता है । नूरपुर से 22 किलोमीटर लाहड़ू व लाहड़ू से 12 किलोमीटर पातका बस , टेक्सी या निजी वाहन द्वारा पहुंचा जा सकता है । अब पातका से 6 किलोमीटर कच्ची सड़क या 3 किलोमीटर पैदल चढाई चढ़कर कुंजर महादेव तक पहुंचा जा सकता । हरी भरी वादियां , घुमावदार खेत और उन खेतों में काम करते हिमाचल के मेहनतकश लोग वर्वस ही आपका ध्यान आकर्षित करते हैं । ज्यूँ ज्यूँ हम ऊंचाई पर बड़ते जाते हैं ऐसा लगता है मानो हम आसमान में पहुंच गए है । पलक झपकते ही हमारी आँखों के सामने बादलों का एक झुण्ड आकर वादी को ढांप लेता है । बहुत सुखद है यह यात्रा ।
हर हर महादेव । जय भोले शंकर
देव राज डढवाल गांव व डाकघर सुखार तहसील नूरपुर
7807271358 , 9418474052
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