Trilkopur Mandir
त्रिलोकी नाथ शिव मन्दिर त्रिलोकपुर
किवदंती अनुसार सतयुग समय की बात है कि भगवान शंकर त्रिलोकपुर की इस गुफा के अन्दर अपनी भक्ति मंे लीन थे।उस समय भगवान शंकर के आस पास के खम्बे जो कुदरत की देन है, सोने के बने थे । भगवान शंकर की पिंडी के ठीक ऊपर शेषनाग की छतर छाया थी । उस समय इन शेषनागों के मुखों से दूध की बूदें शिव भगवान की जटाओं पर गिरती थी। शेषनाग ने मानों हजारों मुखों का फन फैला रखा था। किसी समय इस घनें जंगल में एक गडरिया भेडे चराता हुआ अचानक से भगवान शंकर की इस गुफा में पहॅुच गया। वहा पहुचकर उसने देखा की एक बूढा आखें बंद करके बैठा है और उन के पास सोने के खम्बे खडे हैं। गडरिये के मन में लालच आ गया। उस ने खम्बे को तोडा और बाहर ले जाने लगा। जैसे ही उस ने टूटे टुकडे को उठाया उस को दिखना बंद हो गया। और जैसे ही टुकडे को नीचे रखा आखों से दिखना शुरु हो गया यहि क्रम काॅफी देर तक चला। शायद भगवान की माया के कारण उस का लालच यथाबत कायम रहा। अंत में भगवान शिव की कृपा से वो गडरिया और उस की भेडें वहीं पर पत्थर में बदल गए। बाद में भगवान शकर ने सोचा कि अगर सतयुग में ऐसा होने लग पडा है तो कलयुग में ओर भी बुरा हो सकता हैं। तब भगवान शंकर ने सोने के खम्बो को पत्थर में बदल दिया। और नागों के मुखों से दूध के स्थान पर पानी की बूदें गिरना षुरु हो गई। हर वर्ष शिवरात्री को इस स्थान पर भक्तों का तांता लगा रहता हैं।